प्रकाशिक तन्तु संचार लिंक

प्रकाशिक तन्तु संचार लिंक

प्रकाशिक तन्तु संचार लिंक का ब्लॉक आरेख प्रदर्शित किया गया है।

इसके तीन भाग होते हैं –
1. प्रेषित्र
2. प्रकाश तन्तु केबल
3. अभिग्राही।

प्रेषित्र में एनालॉग सिगनल को सैम्पल करके पल्स कोड मॉडुलन (PCM) तकनीक द्वारा विविक्त स्पंदों (Discrete pulse) में परिवर्तित किया जाता है।(प्रकाशिक तन्तु संचार लिंक)

ये विविक्त स्पंद बिट्स (0’S और 1’S) की कोडेड धारा के रूप में होते हैं।

इस कोडेड धारा के द्वारा प्रकाश स्त्रोत से उत्पन्न प्रकाश पुँज को मॉडुलित किया जाता है।

प्रकाश स्त्रोत इंजेक्शन लेसर डायोड (ILD) या प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) होता है जो विद्युत् ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में परिवर्तित करता है।

सिगनल करता है। सिगनल के अनुसार प्रकाश स्त्रोत से ON और OFF प्रक्रियाओं द्वारा प्रकाश स्पंद प्राप्त होते हैं।

अब प्रकाश स्पंदों को प्रकाशिक तन्तु केबल के द्वारा अभिग्राही तक प्रेषित कर दिया जाता है।


अभिग्राही में प्रकाशिक संसूचक (Optical Detector) प्रकाश स्पंदों को विमॉडुलित करता है।

यह प्रकाश ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा (सिगनल) में परिवर्तित कर देता है।

अब इस सिगनल को डिकोडर की सहायता से पुनः एनालॉग सिगनल में परिवर्तित कर लिया जाता है।


प्रकाश स्त्रोत (Optical Source) :-


प्रकाश तन्तु संचार हेतु प्रयुक्त प्रकाश स्त्रोत में निम्न विशेषताएं होनी चाहिए –

1. इच्छित तरंगदैर्घ्य का एकवर्णी प्रकाश उत्पन्न कर सके।

2. स्त्रोत का आकार छोटा हो ताकि उसे पतले प्रकाशिक तन्तु के साथ युग्मित किया जा सके।

3. स्त्रोत में बहुत तेजी से चालू और बंद होने की क्षमता हो।

तन्तु संचार तंत्र में प्रकाश स्त्रोत के रूप में प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) , अर्धचालक लेसर आदि का उपयोग किया जाता है।

प्रकाशिक तन्तु संचार लिंक

प्रकाश संसूचक (Optical Detector ) :-

प्रकाश तन्तु संचार हेतु प्रयुक्त प्रकाश संसूचक में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए –

1. उसका आकार छोटा हो ताकि उसे पतले प्रकाशिक तन्तु के साथ युग्मित किया जा सके।

2. अत्यंत सुग्राही (Sensitive) हो ताकि दुर्बल से दुर्बल सिगनल को संसूचित कर सके।

3. तेजी से बदलते प्रकाश स्पंदों (जो ON और OFF के रूप में होते हैं) के प्रति अत्यंत ही संवेदनशील हो।

प्रकाश तन्तु संचार तंत्र में प्रकाश संसूचक के रूप में सिलिकॉन प्रकाश डायोड , ऐवेलांश प्रकाश डायोड (APD) आदि का उपयोग किया जाता है।

प्रकाशिक तन्तु संचार के लाभ :-

प्रकाशिक तन्तु संचार के निम्न लाभ हैं –

1. विस्तृत बैण्ड चौड़ाई :-

अवरक्त से पराबैंगनी प्रकाश की आवृत्ति 10¹¹ से 10¹⁶ हर्ट्ज की परास में होती है

अतः परम्परागत ताँबे के तारों (केबल) की तुलना में कहीं ज्यादा सिगनल को प्रकाशिक तन्तुओं के द्वारा संचारित किया जा सकता है ,

क्योंकि प्रकाशिक तन्तुओं के प्रसारण की बैण्ड चौड़ाई बहुत अधिक होती है।

(ताँबे के तारो के 1500 युग्मों के तुल्य संचरण माप एक प्रकाशिक तन्तु द्वारा किया जा सकता है। )

2. छोटा आकार एवं कम द्रव्यमान :-

प्रकाशिक तन्तुओं का व्यास अत्यंत कम (लगभग मानव बाल (Human hair) के आकारका ) होता है

अतः संरक्षण हेतु इस पर उपयुक्त पदार्थों के लेपन के पश्चात भी इसका आकार ताँबे के केबल तारों की तुलना में कम होता है।

साथ ही चूंकि प्रकाशिक तन्तु काँच के बने होते हैं जिसका घनत्व ताँबे के घनत्व से कम होता है और द्रव्यमान भी कम होता है।

इन्हीं गुणों के कारण प्रकाशीय तन्तु चलित वाहनों जैसे – हवाई जहाज , जलयान व उपग्रहों में विशेष उपयोगी होते हैं।

3. विद्युत् पृथक्करण :-

प्रकाशिक तन्तु , काँच या प्लास्टिक जैसे विद्युत् रोधी पदार्थों से निर्मित होते हैं।

अतः इसमें लघु पथन (Short-circuit) व स्पार्क होने की संभावना नहीं होती।

इन्हींकारणों से ये सभी वातावरण में उपयोगी हैं।

4. व्यतिकरण एवं क्रास टॉक से प्रतिरक्षा :-

प्रकाशिक तन्तु संचरण में विद्युत् चुम्बकीय व्यतिकरण , रेडियो आवृत्ति व्यतिकरण या चुम्बकीय स्पंद का प्रभाव नहीं पड़ता।

फलतः इसके उपयोग से वातावरण में उपस्थित विद्युतीय शोर से संरक्षण की आवश्यकता नहीं होती।

प्रकाशिक तन्तु संचरण बिजली चमकने की घटना से भी अप्रभावित रहती है ,

जबकि ताँबे या विद्युत् चालक पदार्थों से निर्मित केबल कई बार बिजली चमकने से अत्यधिक विद्युत् धारा के प्रवाह से क्षतिग्रस्त हो जाता है।

व्यतिकरण नहीं होने के कारण इनमें क्रॉस टॉक (अर्थात दूसरे टेलीफोन की ध्वनि सुनाई देना) नहीं होती।

5. सिगनल सुरक्षा :-

प्रकाशिक तन्तुओं से सिगनल संचरण केबल तन्तुओं के अन्दर होता है।

प्रकाशिक ऊर्जा का विकिरण नहीं होता है।

अतः इनमें से संचरित सिगनल को टेप (रिकॉर्ड) नहीं किया जा सकता।

इनमें संचरित सिगनल को केबल तन्तुओं को जोड़कर ही ग्रहण किया जा सकता है।

सिगनल सुरक्षित होने के कारण ही ये सैन्य प्रतिष्ठानों , बैंकों एवं कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा आँकड़ो के संचरण (Data transmission) में विशेष उपयोगी सिध्द हुए हैं।

6. कम प्रेषण ह्रास :-

प्रकाशिक तन्तु संचरण में सिगनल का क्षीणन (Attenuation) या प्रेषण ह्रास (Transmission loss) परम्परागत केबल तारों की तुलना में लगभग नगण्य होता है

अतः लम्बी दूरी तक बिना किसी क्षीणन के सिगनल को प्रेषित किया जाता है।

प्रकाशिक तन्तु संचरण में दो रिपीटर के मध्य दूरी 35 से 80 किमी हैं

जबकि ताँबे के केबल तारों के लिए रिपीटर मात्र 1 से 1.5 किमी की दूरी पर लगाना होता है।

प्रकाश तन्तु संचार का दोष यही है कि इसमें लागत व्यय अधिक होता है।

काँच के तन्तु तार की तुलना में आसानी से टूट जाते हैं।

अतः विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती हैं। 

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Author: educationallof

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